मेरी यादें
मेजर जयपाल सिंह
मैं एक जाट किसान का बेटा था ,तेजस्वी और अशांत | किसानों के घरों का खालीपन ,कर्ज पर ब्याज और औपनिवेशिक शोषण द्वारा भारत के देहातों की भयंकर तबाही हमारे गाँव की सामंती आत्म निर्भरता और लाइलाज बर्बादी ,देहाती बढ़इयों ,नाइयों ,कुम्हारों और जुलाहों की बेरोजगार फौजें , वह गर्वीली किसान जमात जो अपने दुखों को जबान पर भी नहीं ला सकती थी और अपने बेटों को ब्रिटिश इंडीयन फ़ौज में भाड़े के सिपाही बनाने के जरिये अपनी मुसीबतों का इलाज का इलाज करने का वहम पल रही थी , भूख और बदहाली के खिलाफ बगावत की पहली कस्मासह्तें और उनका निर्मम दमन ----ऐसा है १९२० के दशक का वह नजारा जो मेरी आँखों के सामने घूम जाता है और जिसके बीचों बीच होती है ,मेरी भैंस |
अपनी भैस की छाया में चलते हुए मैंने अपनी आँखों यह सब कुछ घटते हुए देखा है | लेकिन ,मेरी भूमिका एक मूक दर्शक की नहीं रही थी | मैं उस जीवन का एक जीवंत अंग रहा हूँ जबकि मरता हुआ पुराना जमाना अभी पूरी तरह मारा नहीं था और उभरता हुआ नया जमाना अभी साफ तौर पर सामने नहीं आया था |
पुराने और नए के संगम पर एक ऐसी पीढ़ी कड़ी थी जो पुराने के लिए अपने सीने में दर्द लिए थी , हालाँकि उसे मालूम था की पुराना बच नहीं सकता और उभरते हुए नए से वह डरती थी | और , मैं इसका अपवाद नहीं था |